सूरज दिन में और चाँद रात में ही क्यों निकलते हैं. क्यों दोनों साथ-साथ नहीं आते. लोक-कल्पनाओं में एक सुन्दर कहानी.
एक बुढ़िया के दो बच्चे थे-लड़की का नाम चाँद था और लड़के का नाम सूरज। ये लोग बहुत ही गरीबी में दिन काट रहे थे। उन्हीं दिनों बस्तर में अकाल पड़ा ओर लोग दाने-दाने को तरसने लगे। बेचारी बुढ़िया भी अपने दोनों बच्चों के साथ भूख की शिकार हुई ।
उन्हीं दिनों गाँव में माँझी के घर भोज हुआ ।
बूढ़ी माँ ने अपने दोनों बच्चों को वहाँ भेजा और दोना हाथ में देते हुए कहा “मेरे लिए भी दोने में लेकर
आना।”
बुढ़िया खाना सामने देख सूरज तो माँ को भूल गया और जल्दी खाने लगा, पर चाँद नहीं भूली । उसने चुपचाप दोने में खाना रखकर उसे चादर से ढक लिया।
भूख से व्याकुल बूढ़ी माँ दरवाजे पर बैठी थी। सूरज
के हाथ में खाली दोना देखकर वह रो पड़ी और बेटे को शाप दे बैठी- “जा, तू दुनियाँ में सदा जलता रहेगा और दूसरों को भी जलाएगा।"
तभी पीछे से चाँद चादर में दोना छुपाए भागी-भागी
आई। बूढ़ी माँ खुशी से गदगद हो गई और उसने बेटी को दुआ दी - “ दुनियाँ में तू हमेशा
ठंडक फैलाएगी।”
बाद में दोनों भाई-बहिन बड़े हो गए और उनके
अपने-अपने बच्चे भी हुए। एक दिन बातों-बातों में दोनों ने शर्त लगाई, “देखें, कौन जल्दी अपने बच्चों को खाता है ?” सूरज
गट-गट करके अपने बच्चों को निगलने लगा, पर चाँद अपने
बच्चों को गाल में छुपा-छुपाकर रखने लगी ।
जब सूरज ने अपने सारे बच्चों को खा लिया, तब चाँद ने गाल में छुपाए
अपने बच्चों को बाहर निकाल दिया और भाई से बोली, “धिक्कार है
भाई, मै तो तेरी परीक्षा ले रही थी। तूने सच में
अपने नन्हे-मुन्ने बच्चों को खा लिया ? तुझ-सा
पापी दूसरा नहीं होगा। जा, आज से तू मेरी परछाई न देखना, न मैं तेरी परछाई देखूँगी । ”
तभी से सूरज अकेला उगता है और चाँद अपने ढेर सारे बच्चों की सेना लिए आती है, जो आसमान पर आँख-मिचौली खेलते रहते हैं। तब से दोनों ने एक-दूसरे की शक्ल भी नहीं देखी।
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