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सच्चा सुख (महेश कुमार मिश्र)

किसी शहर में एक सेठजी रहते थे। उनका नाम आशाराम था। उनके पास बहुत-से मकान थे, बहुत-सा धन था। सोने-चाँदी की उनके यहाँ कमी न थी। पर वे थे बड़े कंजूस। जरूरी कामों लिए भी वे पैसे खर्च नहीं करते थे। वे बहुत पैसा जमा करना चाहते थे। उन्हें अपने नाती-पोतों तक की चिंता थी।

एक दिन उस शहर के मंदिर में एक संत आए। संत बहुत सीधे और सरल स्वभाव के थे। वे सबकी इच्छा पूरी कर देते थे। धीरे-धीरे आशाराम को भी संत के आने की खबर मिली। उनके मन में लालच आ गया। उन्हें लगा कि शायद, संत उनकी इच्छा पूरी कर देंगे।

दूसरे ही दिन आशाराम पैदल चलकर संत के पास गए। उन्हें प्रणाम करके वे एक ओर बैठ गए। संत ने बड़े प्रेम से उनसे बातचीत की। वे समझ गए कि आशाराम को किसी चीज की जरूरत है। वे आशाराम को अधिक सुखी बनाना चाहते थे। संत बोले - "आपकी इच्छा अवश्य पूरी हो जाएगी।" सेठजी खुशी से उछल पड़े।

संत ने फिर कहा- "मगर एक शर्त है, वह तुम्हें पूरी करनी पड़ेगी।" शर्त की बात सुनकर आशाराम घबराए। उन्होंने सोचा, संतजी कहीं कुछ रुपया-पैसा न माँग बैठें। पर उन्हें अपनी इच्छा तो पूरी करनी ही थी। हिम्मत करके बोले, "शर्त बताइए महाराज ! मैं उसे जरूर पूरी करूँगा।"

संत बोले, "आपके पास ही एक गरीब परिकर रहता है। परिवार में केवल दो प्राणी रहते हैं। आप उन्हें कल के भोजन के लिए सामान दे आइए।"

आशाराम के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं थी। वे सोचने लगे, "अब मेरी इच्छा जरूर पूरी हो जाएगी।" तुरंत ही वे भोजन का सामान लेकर गरीब के पास गए। वहाँ जाकर उन्होंने देखा कि किवाड़ खुले हैं, माँ-बेटी काम में लगी हुई हैं। किसी ने भी आशाराम की ओर ध्यान नहीं दिया।

आशाराम कुछ देर खड़े रहे। फिर बोले, "मैं तुम्हारे लिए खाने का सामान लाया हूँ। इससे तुम्हारी भोजन की कमी पूरी हो जाएगी।" माँ ने कहा, "बेटा, आज का खाना तो मेरे पास है। इसलिए हम इसे नहीं लेंगे।" "माँ, भोजन की आवश्यकता तो आपको कल भी होगी। आप इसे कल के

लिए ही रख लें।" "हम कल की चिंता नहीं करते। हमारी चिंता भगवान करते हैं। उन पर हमारा पूरा भरोसा है।" माँ ने उत्तर दिया। ऐसा कहकर वह फिर अपने काम में लग गई।

माँ की बात सुनकर आशाराम खड़े रह गए। वे विचार करने लगे। धीरे-धीरे उनकी समझ में बात आ गई। उन्होंने
सोचा कि यह परिवार गरीब अवश्य है, लेकिन है बहुत सुखी। इसे कल की कोई चिंता नहीं। एक मैं हूँ, जो नाती-पोतों की चिंता कर रहा हूँ।

आशाराम घर नहीं गए। वे सीधे संतजी के पास पहुँचे। उन्हें प्रणाम करके बैठ गए। संतजी ने पूछा, "उस गरीब परिवार को खाने का सामान दे आए ?" आशाराम ने कहा, "महाराज ! आपने मेरी आँखें खोल दीं। सचमुच संतोष ही सबसे बड़ा धन है। दुनिया में संतोष ही सबसे बड़ा सुख है।"

संतजी ने हँसकर कहा, "जिस इच्छा से तुम यहाँ आए थे, वह पूरी हो गई। जाओ, सारा धन गरीबों को बाँट दो।" आशाराम ने ऐसा ही किया। अब वे बड़े प्रसन्न और सुखी थे।

साभार - श्री महेश कुमार मिश्र एवं मध्यप्रदेश पाठ्य पुस्तक निगम 

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