Pages

जलपरी के रंग (अंडमान की आदिवासी लोककथा)

अंडमान को कभी काला पानी कहा जाता था। वहाँ कई जन-जातियाँ रहती हैं। जाखा आदिवासी आज तक रहस्य बने हुए हैं। सेटिनल जन-जाति के लोग आदमी को देखते ही जहर बुझे तीरों की वर्षा शुरू कर देते हैं। वे बड़े खूंखार होते हैं। लेकिन उसी द्वीप में कुछ ऐसे आदिवासी भी हैं, जो शांतिप्रिय हैं। मध्य अंडमान में ऐसा ही एक आदिवासी कबीला पाया जाता है।

उस कबीले के मुखिया के तीन लड़के थे। सबसे छोटा बड़ा शैतान था। उसका नाम था शुवान। वह बहुत तोड़-फोड़ करता रहता था।

एक दिन आदिवासियों की बस्ती में कोई चित्रकार आया। उसकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी। उसके एक हाथ में लंबी कूची थी। दूसरे हाथ में कई प्रकार के रंग। वह एक पेड़ की छाया में बैठ गया। उसने जल रंगों से भोज-पत्रों पर चार चित्र बनाए। गीले चित्रों को सूखने के लिए धूप में रखकर दूसरा चित्र बनाने लगा।

वह पाँचवाँ चित्र बनाने के लिए कुछ सोच ही रहा था कि अचानक उसका ध्यान पहले बनाए चित्रों की ओर गया। पास जाकर देखा, तो उसे अपने चित्रों के टुकड़े-टुकड़े मिले। चित्रकार का मन रो उठा। उसके चित्र देवताओं को समर्पित थे। वह सोचने लगा- "कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गई। कहीं देवता तो नाराज

नहीं हो गए।"

कलाकार परेशान था। तभी मुखिया का लड़का आकर उसके पास खड़ा हो गया।

कलाकार ने उसकी ओर देखा, तो वह बोला- "मैंने ही तुम्हारे भोज पत्रों को फाड़ा है.।"

"लेकिन क्यों फाड़ा तुमने?"

लड़के ने कहा - "सब बेकार की चीजें लग रही थी।" फिर हँसकर वहाँ से भाग गया।

चित्रकार की आँखें डबडबा आई। वह उदास होकर वहाँ से चला गया।

उसी शाम मुखिया का लड़का अपने चाचा के साथ समुद्र तट की ओर जा रहा था। चाँदनी रात थी, लेकिन कभी-कभी बादल घिर आते और अँधेरा छा जाता। जंगल की साँय-साँय से भय का वातावरण बना हुआ था।

अचानक शुवान ने देखा कि चाचा कहीं गायब हो गए। आसपास खड़े पेड़ विचित्र किस्म के थे। किसी का तना कटा था। तो किसी के फल आधे थे। उस जंगल में शुवान पहले कभी नहीं आया था। वह भय से काँपने लगा।

तभी कुछ जंगली जानवर उसके पास से गुजरे। शुवान ने देखा, किसी का मुँह आधा था, तो किसी का धड़ गायब।

"चाचा, चाचा....." शुवान चिल्लाया। पर उसकी मदद के लिए कोई नहीं आया। शुवान बड़ी तेजी से आगे बढ़ा। तभी एक पत्थर से ठोकर लगी और वह गिर पड़ा। वह फिर चीखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।

एकाएक चाँद की मद्धिम रोशनी में उसने भोज-पत्र के कुछ टुकड़े देखे। शुवान ने बढ़कर टुकड़ों को उठा लिया। ये वही टुकड़े थे, जिन पर चित्रकार ने देवताओं के चित्र बनवाए थे। वह फटे चित्रों को जोड़ने लगा। फिर चट्टान पर वैसे ही चित्र बनाने का प्रयास करने लगा। पर उसके पास जल रंग कहाँ से आते। इसलिए कंकड़ से ही चित्रों को बनाने की कोशिश कर रहा था। शुवान अपने किए पर दुखी था। वह मन-ही-मन कह रहा था- "मैंने चित्रकार का दिल क्यों दुखाया? इतने अच्छे चित्रों को क्यों फाड़ा?

शुवान रोते-रोते कुल देवता से प्रार्थना करने लगा। उसके पिता भी अपने कुल देवता को याद किया करते थे।

शुवान ने देखी; एक जलपरी पानी में बार-बार उछल रही है। वह उसकी ओर बढ़ा।

"घबराओ नहीं शुवान। इधर आओ, मैं तुम्हें रंग देती हूँ। चित्रकार से भी बढ़िया। लेकिन वादा करो, फिर कभी किसी कलाकार का दिल नहीं दुखाओगे।...." जलपरी ने कहा।

"नहीं, अब ऐसा कभी नहीं करूँगा। मुझे जल रंग दीजिए। मैं वैसे ही चित्र बनाने की कोशिश करूँगा।" शुवान के स्वर में आग्रह और पश्चाताप का भाव था।

परी ने भाँति-भाँति के जल रंग उसे दे दिए, फिर वह अदृश्य हो गई। शुवान ने देवताओं के चित्रों में रंग भरे। वह काफी देर तक इस काम में लगा रह।। उसने किसी को अपनी ओर आते देख।। वह चाचा थे।

चाचा, चाचा! तम कहाँ चले गए थे?"

- शुवान अधीर होकर बोला।

"बेटा, में एक जंगली जानवर का पीछा करते हुए आगे निकल गया था। जब मुड़ा, तो तुम नहीं मिले। मैं इतनी देर से तुम्हें खोज रहा।

- चाचा ने कहा।

शुवान ने सारा किस्सा सुनाया। जलपरी की बात भी बता दी।

चाचा उसके साथ बस्ती की ओर लौट चले। अब उसे न कटे-फटे वृक्ष दिखाई पड़ रहे थे और न ही कटे-फटे पशु। सारा वातावरण ठीक हो गया था। अगले दिन शुवान उन चित्रों को चित्रकार के पास ले गया। उसने जलपरी वाले रंग भी उसे सौंप दिए। क्षमा माँगी कि भविष्य में वह ऐसा कभी नहीं करेगा।

नए जलरंगों को देखते चित्रकार प्रसन्न हो उठा। वे रंग अद्भुत थे। उसने शुवान को क्षमा कर दिया।



No comments:

Post a Comment