सावन के महीने का आखिरी दिन था। उस दिन रक्षाबंधन था। सब लड़कियाँ अच्छे कपड़े पहने थीं। वे अपने भाइयों को राखी बाँध रही थीं। यमुना अपनी माँ के साथ रहती थी। उसके कोई भाई न था।
यमुना ने अपनी माँ से कहा- "माँ, मेरी सहेलियाँ अपने भाइयों को राखी बाँध रही हैं। मैं किसे राखी बाँधू?"
माँ ने कहा- "बेटी, तुम
जिसे भाई समझकर राखी बाँधोगी, वही तुम्हारा भाई होगा।"
यमुना ने कहा- "अच्छा माँ, मैं
अवश्य भाई ढूँढूँगी और उसे राखी बाँधूंगी।"
यह कहकर यमुना बाहर जाने लगी। माँ ने उसे
रोककर कहा- "देखो यमुना, भाई बनाना सरल है, पर
इस रिश्ते को निभाना कठिन है। भाई को पाने के बाद तुम्हें सदा उसका आदर करना
होगा।"
यमुना ने कहा-" मैं सदा अपने भाई का
आदर करूँगी। पर माँ,
भाई क्या करेगा ?"
माँ ने कहा- "भाई संकट में तुम्हारी
रक्षा करेगा।"
माँ की बात सुनकर यमुना खुश हो गई। वह
उछलती-कूदती बाहर आई और रास्ते पर खड़ी हो गई। थोड़ी देर में वहाँ से एक घुड़सवार
निकला। यमुना ने उसे रोका। घुड़सवार ने पूछा- "क्या बात है बहिन? मुझे
तुमने क्यों रोका ?" यमुना ने कहा- "आज रक्षाबंधन
है। मैं तुम्हें राखी बाँधूंगी।'
घुड़सवार बोला- "अरे, यह तो
बड़ी खुशी की बात है। आज सबकी कलाइयों पर राखी बंधी है। पर मेरी कलाई सूनी है।
मेरे कोई बहिन नहीं है। तुम आज से मेरी बहिन हुई। तुम मुझे राखी बाँधोगी और मैं
हमेशा तुम्हारी रक्षा करूँगा।"
यमुना खुश हुई। उसने कहा "भैया, घर
चलो।" दोनों घर आए।
यमुना के भाई ने माँ को प्रणाम किया।
यमुना ने पहले चौक पूरा। उस पर पीढ़ा रखा। थाली में आरती सजाई और उसमें मिठाई, नारियल
और राखी रखी। अपने भाई को पीढ़े पर बिठाया। उसे तिलक लगाया। उसकी आरती उतारी और
उसकी कलाई पर राखी बाँध दी। फिर उसेः नारियल और मिठाई दी।
भाई ने अपनी बहिन के चरणों पर माथा टेका।
बहिन को भाई मिला। भाई को बहिन मिली। यह देखकर माँ की आँखों में आनंद के आँसू उमड़
आए।
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