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चुहिया की शादी

किसी वन में एक ऋषि रहते थे। वे अपने आश्रम में ही रहकर अपना अधिक समय पूजा-पाठ, ईश्वर का ध्यान करने में व्यतीत करते थे ।

एक दिन ऋषि अपनी कुटी के बाहर ध्यान में मग्न थे। अचानक उनकी गोद में चील के पंजे से छूटकर एक चुहिया आ गिरी। ऋषि का ध्यान भंग हो गया। उन्हें उस अधमरी चुहिया पर तरस आ गया। उन्होंने चुहिया का घाव धोया, उसे दूध पिलाया। चुहिया चार-एक दिन में बिल्कुल ठीक हो गई।

ऋषि अब रोज ही अपने हाथों से चुहिया को खाना खिलाते थे। वे उसे बहुत प्यार करते थे और अपनी बेटी के समान मानते थे। ऋषि के लाड़-प्यार से चुहिया खूब स्वस्थ हो गयी ।

चुहिया जब बड़ी हो गई तो ऋषि का उसके विवाह की चिंता हुई। उन्होंने उससे पूछा, “बेटी, तुझे कैसा वर पसंद है?” चुहिया ने कहा,  'पिता जी मुझे ऐसा वर चाहिए जो अत्यंत शक्तिशाली हो।“

ऋषि ने सोचा, “संसार में सूर्य से अधिक शक्तिशाली कोई नहीं है। अतः मुझे सूर्य के पास चलना चाहिए।“

ऋषि ने चुहिया को एक सुंदर युवती के रूप में बदल दिया था। वे उसे लेकर सूर्यदेव के पास पहुँचे। सूर्य के पास पहुँचकर ऋषि ने उनसे कहा भगवन्! यह मेरी पुत्री है। यह अपना विवाह एक ऐसे वर के साथ करना चाहती है. जो अत्यंत शक्तिशाली हो। संसार में आपके समान शक्तिशाली और कोई नहीं है। अतः आप इसे स्वीकार कीजिए।"

सूर्य भगवान ने ध्यान लगाकर यह जान लिया कि ऋषि जिसे अपनी बेटी बता रहे है, वह तो एक चुहिया है। लेकिन वे ऋषि से स्पष्ट इंकार भी नहीं कर सकते थे। इसलिए उन्होंने बात बनाकर कहा “ऋषिवर! आपका यह कहना ठीक नहीं है कि मैं संसार में सबसे अधिक शक्तिशाली हूँ। मुझसे अधिक शक्तिशाली तो बादल है जो जब चाहता है. मेरा प्रकाश रोक लेता है। आप कृपया उसी के पास जाइए।“

बात ऋषि की समझ में आ गई। वे चुहिया को लेकर बादल के पास पहुंचे। बादल से भी उन्होंने वही कहा जो सूर्यदेव से कहा था। बादल ने भी ध्यान लगाया। उसे भी ज्ञात हो गया कि ऋषि चुहिया के साथ मेरा विवाह करना चाहते हैं। उसने थोडा विचारकर कहा,” महात्मनः! आपने मुझे सर्वशक्तिमान समझा, इसके लिए धन्यवाद। परंतु में सर्वशक्तिमान नहीं हूँ। मुझसे अधिक तो शक्तिशाली पर्वतराज हिमालय है जो आसानी से मेरा मार्ग रोक लेते हैं। आप कृपया उन्हीं के पास जाइए।“

अब ऋषि पर्वतराज हिमालय के पास पहुँचे। उन्होंने अपने मन की बात पर्वतराज से कही। पर्वतराज ने भी ध्यान लगाकर सारी बात जान ली। ये ऋषि से बोले, “ऋषिवर! आप मेरे यहाँ पधारे, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ, किन्तु मैं दुनिया में सर्वशक्तिमान नहीं हूँ। मुझसे अधिक शक्तिमान तो चूहे हैं जो मेरे अंदर अपने रहने के लिए बिल बना लेते हैं। आप उन्हीं के पास जाइए।“

ऋषि अपने आश्रम में लौट आए। अच्छा मुहूर्त देखकर ऋषि ने अपने आश्रम में ही रहनेवाले एक मोटे शक्तिशाली चूहे से चुहिया का विवाह कर दिया।

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