Pages

दो दैत्य (मेघालय में रहने वाली गारो जनजाति की लोककथा)

गोयरा दो महीने का बालक था। मगर वह सेर भर दूध पीता था। फिर खाना भी खाने लगा। वह भी ढेर सारा। सभी आश्चर्य से उसे देखते, कहते- "वाह, बालक तो पूरा दैत्य लगता है।"

तीन महीने का होते ही वह पेड़ पर चढ़ने लगा। माँ पुकारती - "उतर आओ बेटा। छोटे हो। गिर पड़ोगे।" पर वह कहाँ मानने वाला था। पेड़ पर चढ़कर इधर-उधर उछलता। बंदर की तरह खों-खों करके शोर मचाता। उसके लिए डलिया भर रोटी, बालटी भर दूध आता, तब कहीं नीचे उतरता।

माँ ने एक ओझा बुलवाया। उसने कहा, "यह बच्चा अद्भुत लक्षण लेकर आया है। पिछले जन्म में यह कोई दैत्य था। इसकी वजह से गाँव को खतरा पैदा हो सकता है। खास किस्म की एक पूजा होगी। तभी यह बालक दूसरे बालकों की तरह बन सकेगा।"

पूजा की तैयारियाँ होने लगीं। गोयरा के मामा सामान लेने दूर बाजार में गए। रास्ते में भयानक जंगल पड़ता था। वहाँ उन्हें एक दैत्य मिला। वह उसके मामा को कौर-सा निगल गया। गोयरा की माँ बाट जोहती-जोहती थक गई। गाँव के लोग परेशान थे।

गोयरा बचपन से ही जंगली हाथियों की सवारी करने लगा था। शेर का शिकार भी करने लगा। अखाड़े में बड़े-बड़े पहलवान उसके सामने भीगी बिल्ली बन जाते। एक दिन उसे अपने मामा के बारे में पता चल गया। क्रोध से भर, वह धनुष-बाण ले, दैत्य से लड़ने चल दिया। सब भयभीत थे कि अब क्या होने वाला है। दैत्य ने गोयरा को दूर से ही देख लिया। वह बिजली की तरह चमका और बादल की तरह गरजा। उसके मुँह से आग निकल रही थी। जबड़े पहाड़ी गुफा की तरह फट गए थे। एक भारी पेड़ उखाड़, दैत्य गोयरा की तरफ भागा। गोयरा ने एक तीर छोड़ा। तीर दैत्य के मुँह को चीरता हुआ निकल गया। फिर गोयरा ने अपना आकार बढ़ाया। बरगद के वृक्ष की तरह मोटा होता गया। दैत्य का पेड़ उसके हाथ में आकर टिक गया।

कई दिन तक युद्ध होता रहा। इस लड़ाई के कारण गोयरा पहाड़ियाँ फटने लगीं। शिलाओं में दरारें पड़ गईं। सुनते हैं, सात साल तक भयंकर युद्ध चलता रहा। दोनों लहूलुहान हो गए। दैत्य जिधर भी भागता, गोयरा उसका पीछा करता।

आठवें वर्ष की पहली सुबह दैत्य हार गया। गोयरा ने उसे उठाकर पटक दिया। उसके गिरते ही जोर का धमाका हुआ। गोयरा ने उसका पेट चीर डाला। आश्चर्य से देखा, उसके पेट से उसका मामा निकला। गोयरा की खुशी का ठिकाना न रहा। उसे पीठ पर बैठाकर वह ले आया। सारे गाँव में उल्लास का वातावरण छा गया।

इसके बाद गोयरा गाँव में नहीं रहा। एक दिन गाँववालों ने देखा - गोयरा के दोनों हाथ पंख बन गए हैं।

वह आकाश की ओर उड़ने लगा। गाँववालों से बोला- "मैं तुम्हारे लिए दो चीजें छोड़े जा रहा हूँ- बिजली और गर्जन। बिजली में तुम्हें मेरी झलक दिखाई देगी। बादल के गर्जन में मेरा स्वर सुन सकोगे।" यह कह, गोयरा उड़ गया।

(मेघालय में रहने वाली गारो जनजाति की लोककथा)

No comments:

Post a Comment